Tuesday 18 February 2014

आज मेरी कविता मुझसे नराज है

आज मेरी कविता मुझसे नराज है डर है उसे, लिख कर भुल गया हूँ मैं । वो कहती है, एक तुम ही तो हो जिसके संग खिलखिलाकर हँस लेती हूँ । कभी एक दुल्हन कि तरह सज लेती हूँ । पर जब तुम ही नहीं करोगे बातें मुझसे तो क्यों मैं बैठु रोज ऐसे सजसवर के । वो कहती है,याद है तुम्हे, कभी एक दर्द तुम्हारा छुपा लिया था । तो कभी एक ख़ुशी मे हमने ईद और दीवाली मना ली थी । और जब रात का अंधेरा बाँटा हमने आधा-आधा फिर क्यों मुझे धुप कम छाँव ज्यादा। अब क्या बताऊ उसे किन उल्जनो मे फसा हूँ मैं । कैसे उसके बिना, दुखों मे भी हँसा हूँ मैं । वक़्त कि रफ़्तार मे खो गया हूँ मैं । ऐसा नहीं है, कि उसे भूल कर सो गया हूँ मैं । इस दौड़ती जिंदगी से एक पल चुरा कर उसे दे देने को जी चाहता है । इंद्र धनुष से रंग उधार मांग कर उसके संग रंगोली बनाने को जी चाहता है । बारिश कि इन बूंदो मे उसके संग एक बार फिर से पागलो सा नाचने को जी चाहता है । ये सब बातें सुना कर आज उसे फिर से मनाने को जी चाहता है ।

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