आज मेरी कविता मुझसे नराज है
डर है उसे, लिख कर भुल गया हूँ मैं ।
वो कहती है, एक तुम ही तो हो
जिसके संग खिलखिलाकर हँस लेती हूँ ।
कभी एक दुल्हन कि तरह सज लेती हूँ ।
पर जब तुम ही नहीं करोगे बातें मुझसे
तो क्यों मैं बैठु रोज ऐसे सजसवर के ।
वो कहती है,याद है तुम्हे,
कभी एक दर्द तुम्हारा छुपा लिया था ।
तो कभी एक ख़ुशी मे हमने ईद और दीवाली मना ली थी ।
और जब रात का अंधेरा बाँटा हमने आधा-आधा
फिर क्यों मुझे धुप कम छाँव ज्यादा।
अब क्या बताऊ उसे
किन उल्जनो मे फसा हूँ मैं ।
कैसे उसके बिना, दुखों मे भी हँसा हूँ मैं ।
वक़्त कि रफ़्तार मे खो गया हूँ मैं ।
ऐसा नहीं है, कि उसे भूल कर सो गया हूँ मैं ।
इस दौड़ती जिंदगी से एक पल चुरा कर
उसे दे देने को जी चाहता है ।
इंद्र धनुष से रंग उधार मांग कर
उसके संग रंगोली बनाने को जी चाहता है ।
बारिश कि इन बूंदो मे
उसके संग एक बार फिर से पागलो सा नाचने को जी चाहता है ।
ये सब बातें सुना कर
आज उसे फिर से मनाने को जी चाहता है ।
Wow😍💜💜💜💜💜💜
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